मंद झकोरों के प्यालों में मधुऋतु सौरभ की हाला
बनी रहे वह मदिर पिपासा तृप्त न जो होना जाने,
जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।।६४।
जब जीवन का दर्द उभरता उसे दबाते प्याले से,
यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,
प्रति रसाल तरू साकी सा है, प्रति मंजरिका Hindi poetry है प्याला,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
साथ इन्हें भी ले चल मेरे न्याय यही बतलाता है,
पत्र गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला,
और चिता पर जाये उंढेला पत्र न घ्रित का, पर प्याला
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,
चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।
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